शिमला, 25 जनवरी | हिमाचल की वादियों में अधिक बफबारी के कारण इस वर्ष सेब उत्पादकों को यहां सेब का पैदावार अधिक होने की उम्मीद है। इससे बाजार में भी सेब की उपलब्धता बढ़ सकती है और ग्राहक सेब के पिछले साल की तुलना में सस्ता होने की उम्मीद कर सकते हैं।
शिमला जिले में कोठगढ़ गांव के एक प्रमुख सेब उत्पादक गोपाल मेहता ने आईएएनएस से कहा, “मेरे बागीचे में तीन फुट तक बर्फ जमी है। यह सेब की फसल के लिए बहुत अच्छा है।”
उन्होंने कहा कि पूरे सेब उत्पादक क्षेत्र में चार जनवरी से लगातार बर्फबारी हो रही है।
ऊपरी शिमला के एक अन्य सेब क्षेत्र कोठाई के कनवर दयाल कृष्ण सिंह ने कहा, “बर्फ सेब के लिए सफेद खाद है। अधिक बर्फ का मतलब है बेहतर और रोगमुक्त सेब। अधिक बर्फ गिरने से गर्मियों में मिट्टी में नमी बरकरार रहती है।”



कोठगढ़ और कोठाई में रॉयल डिलीसियस, रेड डिलीसियस और रिच-ए-रेड किस्म के सेब होते हैं।



राज्य में हर साल 2000 करोड़ रुपये का फलों का कारोबार होता है। यह मुख्यत: शिमला, कुल्लू, मंडी, लाहौल और स्पीति, किन्नौर और चम्बा जिले में फैला हुआ है।
सोलन के वाई.एस. परमार युनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टीकल्चर एंड फॉरेस्ट्री के संयुक्त निदेशक एस.पी. भारद्वाज ने कहा कि अभी सेब पेड़ सुप्तावस्था में हैं।
उन्होंने कहा, “सुप्तावस्था में सेब के पेड़ों को 1000 से 1600 घंटे पूरी तरह ठंडक की जरूरत पड़ती है। 1100 से अधिक घंटा बीत चुका है। यह मौसम सेब के लिए पूरी तरह से अनुकूल है।”
मार्च अंत तक सेब के पेड़ की सुप्तावस्था खत्म होगी और फिर इसमें गुलाबी फूल लगेंगे। हालांकि यदि इस समय यदि ओलावृष्टि होती है, तो उससे फल को नुकसान पहुंच सकता है।
वर्ष 2011 में राज्य में 1.4 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन हुआ था। एक पेटी में 20 किलोग्राम सेब होता है। वर्ष 2010 में 4.46 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन हुआ था।
– विशाल गुलाटी