
Hazaribagh / Ranchi: मनरेगा में हुए फर्जीवाड़े को लेकर झारखंड हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी. वित्त वर्ष 2013-14 में मनरेगा के तहत अनियमित्ता को लेकर याचिकाकर्ता शमशेर आलम ने आरटीआई से जवाब मांगा था. अब इस मामले को लेकर याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट अजीत कुमार ने जनहित याचिका दायर किया है. याचिका में कहा गया है कि हजारीबाग जिले के चुरचू प्रखंड के जरबा गांव में मनरेगा के तहत कई घोटाले किए जा रहे थे. इसको लेकर गांव के लोगों ने विरोध जताया था. लेकिन जिला के अधिकारियों और वर्तमान मुखिया व पूर्व मुखिया की मिलीभगत से मनरेगा राशि में गड़बड़ी की गयी थी.
यह है मामला
हजारीबाग जिले के चुरचू प्रखंड के जरबा गांव के मुखिया लक्ष्मी देवी व उसके पति पूर्व मुखिया रामदुलार साव मनरेगा में मजदूर बनकर वित्त वर्ष 2013-14 में लाखों डकार गए. इस गांव को आदर्श गांव बनाने के लिए केंद्रीय राज्यमंत्री व हजारीबाग के सांसद जंयत सिन्हा ने साल 2014 में गोद लिया था. मुखिया दंपत्ति ने मनरेगा योजना के अलावा अन्य योजनाओं की राशि में भी जमकर गोलमाल किया. मुखिया दंपत्ति ने अपने साथ-साथ अपने लोगों को भी फर्जी तरीके से लाभ पहुंचाया. वहीं वर्ष 2011 से 2017 के बीच इस दंपती ने लाखों रुपये हजम कर लिए. इसका खुलासा याचिकाकर्ता के आरटीआइ एक्ट के तहत मांगी गई जानकारी में हुआ.
अधिकारियों की रही है मौन सहमति
चुरचू प्रखंड कार्यालय से मिले 3140 पत्रों में यह बताया गया है कि मनरेगा में हुए अनियमितता में मुखिया के अलावा तत्कालीन बीडीओ, कंप्यूटर ऑपरेटर और वेंडर की भी मौन सहमति रही. प्रखंड कार्यालय के अधिकारी और कर्मचारी ने मुखिया द्वारा कई मदों में दिए गए सैकड़ों फर्जी बिलों पर कभी भी कोई आपत्ति नहीं जतायी. बल्कि आंखें मूंदकर अपनी स्वीकृति दे दी. वहीं पास किए गए इन बिलों पर इन लोगों के हस्ताक्षर भी मौजूद हैं. हजारीबाग के सामाजिक कार्यकर्ता शमशेर आलम ने आरटीआई के तहत इस मामले की जानकारी मांगी थी. इस मामले की जांच करने के लिए तीन आवेदन दिए. याचिकाकर्ता शमशेर आलम का कहना है कि बीडीओ इस मामले में जांच करने की बजाय इसे रफा-दफा करने में लग गयी. शमशेर ने प्रथम अपीलीय पदाधिकारी से इस मामले में उचित कार्रवाई के लिए आवेदन दिया. मामला आगे बढ़ने पर अब बीडीओ आरटीआई एक्ट के तहत कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं करा रही हैं.
इस तरह से हुआ है फर्जीवाड़ा
मनरेगा के वेंडरों ने अपने बिल में राजमिस्त्री को दिए गए पैसों का भी जिक्र किया हैं. जबकि मनरेगा में यह साफ निर्देश है कि मजदूरों का भुगतान उनके बैंक खातों में किया जाये. इसके अलावा जिस कुएं का निर्माण जरबा पंचायत के बाहर किया गया, उसका भुगतान भी मुखिया ने अपनी पंचायत से किया. ऐसा अपने लोगों को लाभ देने के लिए किया गया.
वहीं मनरेगा के जिस वेंडर ने साल 2012 में फर्जीवाड़ा किया, उस पर कानूनी कार्रवाई करने की बजाय फिर से उसी को 2013-14 में सप्लाई ऑर्डर दिया गया. जिस जेई को काम की गुणवता जांचने का जिम्मा मिला, वह तीन-चार महीने तक साइट पर गए ही नहीं. जबकि कई मनरेगा वेंडरों को एक ही योजना के लिए दो-दो बार भुगतान किया गया.
वहीं सरकार के निर्देश के बावजूद गांव में लगाने के लिए 70 सोलर लाइटों की खरीद ज्रेडा से ना करके स्थानीय विक्रेता से की गयी. वहीं प्रधानमंत्री आवास योजना में भी जमकर गड़बड़ी की गयी और इसके तहत कई लोगों को भी मकान दिए गए. मनरेगा के जितने भी वेंडरों ने वैट के नाम पर पैसे वसूले, उन्होंने यह पैसे सरकार को जमा किए ही नहीं.
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