Kumar Gaurav
Ranchi, 06 December: विधानसभा 2016 के बजट सत्र में सरकार ने जिन पांच शैक्षणिक विधेयक को पास किया था. उन सभी का दर्जा खतरे में आ सकता है अगर सरकार पूरे कायदे से इसकी जांच के आदेश दे देती है. क्योंकि कोई भी संस्थान को यूनिवर्सिटी का दर्जा देने से पहले एक नियम के तहत राज्य सरकार, सरकार के वरीय पदाधिकारियों और राज्य के शिक्षाविदों की एक स्क्रूटनी टीम तैयार करनी होती है. जिसके जांच रिपोर्ट के बाद ही यूनिवर्सिटी का दर्जा देना है या नहीं ये तय होता है. ये रोचक है झारखंड सरकार ने ऐसी कोई भी टीम नहीं बनाई. सवाल ये उठता है कि बिन जांच कमेटी के कैसे यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया जा रहा है. क्या सरकार विधानसभा में अपने बहुमत का पूरा फायदा लेते हुए जो मन में आ रहा है वो बजट में पास करा ले रही है.
क्या है नियम
राज्य सरकार दवारा गठित कमिटि के दवारा निम्नलिखित तथ्यों पर आधारित रिपोर्ट बनानी होती है:
1. संस्थान के वित्तीय सुदृढ़ता और संपत्ती तथा प्रायोजक और उसके प्रमोटर के दक्षता की जानकारी
2. स्पाॅनसर के बैकग्राउंड और शिक्षा क्षेत्र में अनुभव
3. कोर्स जिसकी पढ़ाई होगी वो मानव संसाधन और समय की मांग पर आधारित होने के साथ साथ इसके शिक्षा के उभरते शाखा के तौर पर खुद को स्थापित कर सके.
4. जो कमिटी रिपोर्ट तैयार कर रही होगी वो संस्थान के वित्तीय प्रायोजक से कोई भी जानकारी मांग सकती है जो इसके प्रायोजन के लिए उचित हो.
5. इस जांच कमिटि को राज्य सरकार के पास इसकी पूरी रिपोर्ट पहली मिटिंग के दो महीने पूरे होने पर दे देनी होती है.
6. स्क्रूटनी के दौरान पाई गई कमियों को कमिटी द्वारा प्रायोजक को इसके निष्कासन के लिए कहा जाए, तथा उसे दूर करने की सिफारिशें देती है जिसका अनुपालन करना होता है.
नहीं बनी कोई कमिटी न हुई तथ्यों की जांच
राज्य सरकार के उच्च शिक्षा एवं तकनीकी सचिव से जब बात कर कमिटी में शामिल लोगों के नाम की जानकारी मांगी गई तो उन्होंने कहा कि ऐसी कोई भी कमिटी का गठन किया ही नहीं गया. अब सवाल ये उठता है कि यूनिवर्सिटी का दर्जा देने के लिए जो मापक तय किए गए हैं क्या वो हमारे राज्य में प्रभावी नहीं है या फिर सरकार जानबुझकर इसकी अवहेलना कर रही है.
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