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Lucknow, 11September: उत्तर प्रदेश में राजमार्गों तथा अन्य व्यस्त रास्तों पर छुट्टा घूमने वाले गोवंशीय पशुओं के कारण हो रही दुर्घटनाओं की खबरों के बीच एक प्रमुख गोरक्षा संगठन ने राज्य सरकार को गोबर और गौमूत्र खरीदने का सुझाव दिया है.
हालांकि राज्य गो सेवा आयोग का भी मानना है कि वह इन दोनों चीजों के सदुपयोग से गौ-शालाओं को स्वावलम्बी बनाएगी.
जानवरों को सड़क पर छोड़ रहे हैं लोग
उत्तर प्रदेश समेत देश के 14 राज्यों में गौ-संरक्षण के लिये काम रहे ‘सर्वदलीय गोरक्षा मंच’ के अध्यक्ष जयपाल सिंह ने मिडिया से बातचीत में कहा कि राज्य में मुख्य मार्गों पर गोवंशीय पशुओं के लावारिस घूमने से तरह-तरह की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं. लोग व्यावहारिक रूप से अनुपयोगी हो चुके अपने जानवरों को सड़क पर छोड़ रहे हैं. अगर सरकार उनके गोबर और गोमूत्र खरीदने की गारंटी दे तो एक भी गोवंशीय पशु सड़क पर नहीं दिखेगा.
गोवंशीय पशुओं की रक्षा के लिए सरकार क्यों नहीं शुरू करती काम
सिंह ने कहा कि उनके संगठन ने केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकार को यह सुझाव पहले ही दे रखा है. उन्होंने कहा कि जिस तरह एक स्वदेशी कम्पनी ‘गोनाइल’ बना रही है, उसी तरह का उपक्रम सरकार क्यों नहीं शुरू करती. इससे सरकार को तो फायदा होगा ही, साथ ही गोवंशीय पशुओं की रक्षा भी होगी.
सरकार को हर गौशाला को प्रत्येक गाय पर होने वाले खर्च का आधा हिस्सा देना चाहिये: मुख्यमंत्री योगी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा गत 30 अगस्त को एक बैठक में प्रदेश में छुट्टा पशुओं को रखने के उद्देश्य से गौ शालाओं के लिये गौ संरक्षण समितियां गठित करने के सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को मध्य प्रदेश की तरह हर गौशाला को प्रत्येक गाय पर होने वाले खर्च का आधा हिस्सा देना चाहिये.
उन्होंने कहा कि हालांकि प्रदेश सरकार ने कहा है कि गौ संरक्षण समितियों को गौशालाओं का संचालन अपने संसाधनों से करना होगा. यह व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि अगर सरकार आर्थिक मदद नहीं देगी तो समितियां अपने संसाधनों से कहां तक काम कर सकेगी.
हमारा पूरा ध्यान गौ-शालाओं को स्वावलम्बी बनाने पर है: राजीव गुप्ता
इस बीच, राज्य गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष राजीव गुप्ता ने कहा ‘‘हमारा पूरा ध्यान गौ-शालाओं को स्वावलम्बी बनाने पर है. यह काम गोबर और गौमूत्र के सदुपयोग से ही होगा. गोबर का उपयोग खाद और कीटनाशक बनाने में होता है, जबकि दवाइयां बनाने में गौमूत्र का प्रयोग किया जाता है. गौशालाएं जिला गौ-संरक्षण समितियों के मार्गदर्शन में ऐसा करेंगी. सरकार कच्चा गोबर और गौमूत्र नहीं खरीदेगी.
16 नगर निगमों में बनाएगी गौशालाएं
उन्होंने कहा कि ऐसी कोशिश होगी कि जैविक खाद बनाने के लिये कृषि विभाग, उर्वरक विभाग गोबर खरीदें तथा दवाइयां बनाने के लिये औषधि निर्माण इकाइयां गोमूत्र खरीदें. इसके लिये व्यवस्था बनाई जाएगी.
गुप्ता ने कहा कि सरकार बुंदेलखण्ड के सात जिलों तथा 16 नगर निगमों में गौशालाएं बनाएगी. बाकी जो अनुदान प्राप्त गोशालाएं हैं, उन्हें मिलने वाली मदद को बढ़ाया जाएगा.
492 गौ शालाएं गौशाला निबंधक कार्यालय में पंजीकृत हैं
उन्होंने माना कि इस वक्त सरकार की तरफ से गौशालाओं को दी जाने वाली धनराशि बहुत ज्यादा नहीं है. कोशिश की जाएगी कि इसे बढ़ाया जाए. इस वक्त केवल 10-15 गौशालाओं को ही सालाना करीब तीन-चार करोड़ रुपये का अनुदान दिया जा रहा है. हालांकि प्रदेश में 492 गौ शालाएं गौशाला निबंधक कार्यालय में पंजीकृत हैं.
गुप्ता ने बताया कि राजस्थान में सालाना करीब 150 करोड़ रुपये सहायता दी जा रही है. मध्य प्रदेश में यह धनराशि लगभग 25 करोड़ रुपये है.