नई दिल्ली : भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को लेकर समाजसेवी अन्ना हजारे ने केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया है। देश भर के किसानों की तरफदारी कर रहे अन्ना ने अध्यादेश के कुछ बिंदुओं पर अपनी नाराजगी जताई है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार ने 30 दिसंबर, 2014 को भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा एवं पारदर्शिता का अधिकार, पुनर्वास (संशोधन) अध्यादेश लाया था।
यह अध्यादेश भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा एवं पारदर्शिता का अधिकार, सुधार तथा पुनर्वास अधिनियम, 2013 का संशोधित रूप है।
यह अधिनियम सार्वजनिक कार्यो के लिए किए जाने वाले भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को रेखांकित करता है।
अधिनियम में कुछ संशोधन किए गए हैं, जिसपर सामाजिक कार्यकर्ताओं व विपक्षी पार्टियों ने आपत्ति जताई है। ये विवादित बिंदु निम्नलिखित हैं :
– भूमि उपयोग की पांच श्रेणियों को कुछ प्रावधानों से छूट : यह अध्यादेश भूमि उपयोग को पांच श्रेणियों में विभाजित करता है- रक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढांचा, सस्ते मकान, औद्योगिक गलियारा तथा सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी) परियोजनाओं सहित ढांचागत परियोजनाएं, जिनमें भूमि केंद्र सरकार की होती है।
अधिनियम के मुताबिक, निजी परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण हेतु 80 फीसदी भूमि मालिकों, जबकि पीपीपी परियोजनाओं के लिए 70 फीसदी भूमि मालिकों की सहमति अनिवार्य है।
लेकिन यह अध्यादेश उपरोक्त वर्णित पांच श्रेणियों को अधिनियम के इस प्रावधानों से छूट प्रदान करता है।
इसके अलावा, यह अध्यादेश एक अधिसूचना के जरिए सरकार को इन पांचों श्रेणियों की परियोजनाओं को कुछ प्रावधानों से छूट दिलाने का काम करता है।
-उपयोग में न लाई गई भूमि की वापसी : अधिनियम (2013) के मुताबिक अगर अधिग्रहित भूमि को पांच सालों तक इस्तेमाल में न लाया गया, तो उसे उसके वास्तविक मालिक या भूमि बैंक को वापस कर दिया जाएगा।
लेकिन अध्यादेश के मुताबिक, भूमि इस्तेमाल न होने की सूरत में पांच साल में या परियोजना का खाका तैयार करते समय जो समय सीमा निर्धारित होगी (जो बाद में तय हो), उसके अनुसार भूमि वापस किया जाएगा।
-अन्य संशोधन : अधिनियम (2013) में निजी अस्पतालों व निजी शैक्षिक संस्थानों के लिए भूमि अधिग्रहण का प्रावधान नहीं था। लेकिन अध्यादेश में इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है।
– अधिनियम (2013) में निजी कंपनियों के लिए भूमि अधिग्रहण का प्रावधान था, जबकि अध्यादेश में निजी कंपनी को बदलकर ‘निजी निकाय’ कर दिया गया है।
निजी निकाय सरकारी संस्थाओं से अलग निकाय होते हैं, जिसमें स्वामित्व, साझेदारी, कंपनी, निगम, गैर-लाभकारी संगठन या अन्य किसी कानून के तहत अन्य निकाय शामिल हो सकते हैं।
-अधिनियम (2013) कहता है कि यदि सरकार द्वारा कोई अपराध किया जाता है, तो इसका जिम्मेदार संबंधित विभाग के प्रमुख को माना जाएगा, जबतक कि वह यह नहीं साबित कर दे कि अपराध उसके संज्ञान में नहीं था या उसने अपराध को रोकने का प्रयास किया था।
अध्यादेश में इस प्रावधान को हटा दिया गया है और कहा गया है कि यदि किसी सरकारी अधिकारी द्वारा कोई अपराध किया जाता है, तो सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना उसपर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।