नई दिल्ली, 22 जनवरी | भारतीय मूल के अमेरिकी विशेषज्ञ श्रीनिवास वर्धन का मानना है कि भारतीय शिक्षा प्रणाली में लचीलापन नहीं हो पाने के कारण यहां अच्छे गणितज्ञों की कमी है।
न्यूयार्क से ईमेल के जरिये दिए साक्षात्कार में 71 वर्षीय श्रीनिवास ने कहा, “भारत से बड़ी संख्या में इंजीनियर एवं डॉक्टर निकलते हैं। लेकिन विज्ञान आज बहु-आयामी हो गया है और सम्भवत: अधिकतर विषयों में हमारी शिक्षा प्रक्रिया में लचीलापन नहीं है।”
गणित में प्रोबैबिलिटी के सिद्धांत की दिशा में काम करने वाले श्रीनिवास ने कहा, “पिछले कुछ समय से भारत सरकार शिक्षा तथा शोध, विशेषकर मौलिक विज्ञान की पढ़ाई के लिए अधिक संसाधन जुटा रही है। लेकिन यह कुछ समय बाद फलीभूत होगा।”
तमिलनाडु के एक विज्ञान शिक्षक के बेटे श्रीनिवास ने वर्ष 1963 में कोलकाता स्थित भारतीय सांख्यिकी संस्थान से पी.एचडी की थी और इसके बाद न्यूयार्क यूनिवर्सिटी में कोरांट इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमेटिकल साइंस चले गए। फिलहाल वह वहां प्रोफेसर हैं।



वर्ष 2007 में श्रीनिवास को एबेल पुरस्कार मिला, जो गणित के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार समझा जाता है। उन्हें पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया है। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पिछले साल उन्हें वर्ष 2011 के लिए अमेरिका का नेशनल मेडल ऑफ साइंस भी दिया था। वरधान ने इस पर खुशी जताते हुए कहा कि जब किसी के योगदान को अवार्ड से सम्मानित किया जाता है तो यह संतोष देता है।



प्रसिद्ध गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जन्मदिन पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा वर्ष 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष घोषित करने की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की घोषणा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए श्रीनिवास ने कहा कि भारत को बड़ी संख्या में ऐसे कॉलेज विकसित करने की आवश्यकता है, जिससे छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके।
प्रोबैबिलिटी सिद्धांत के क्षेत्र में श्रीनिवास की खोजों का इस्तेमाल बीमा एवं वित्त के क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर होता है। उन्होंने कहा कि प्रोबैबिलिटी सिद्धांत असाधारण एवं अप्रत्याशित घटनाओं के बारे में अनुमान नहीं लगा सकता, लेकिन यह इन्हें समझने और खतरों को कम करने में हमारी मदद कर सकता है।
– सौरभ गुप्ता