बोधगया (बिहार), 3 जनवरी | बिहार के गया जिले के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल व धर्मनगरी बोधगया में बौद्ध धर्मावलम्बियों की तंत्र साधना की प्रसिद्ध कालचक्र पूजा के दौरान ऐसा लग रहा है कि जैसे बौद्धों की पूरी दुनिया ही यहां सिमट आई हो।
देश के विभिन्न राज्यों के अलावा तिब्बत, नेपाल, चीन, जापान, म्यांमार, कनाडा, अमेरिका सहित कई देशों से करीब दो लाख बौद्ध धर्मावलम्बी कालचक्र पूजा में आहूती देने के लिए ज्ञान की इस नगरी में उपस्थित हैं। शीर्ष धर्मगुरु दलाईलामा के प्रतिदिन होने वाले प्रवचन के दौरान लामाओं की एकजुटता और एकाग्रता धर्म के प्रति आस्था और शांति की मिसाल पेश कर रही है तो हॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता रिचर्ड गेल की उपस्थिति जीवन में आध्यात्मिकता को लेकर आकर्षण पैदा कर रही है।



यहां प्रतिदिन किसी न किसी मौके पर कतारबद्ध तरीके से मौन रहकर विश्वशांति का उपदेश दिया जा रहा है। तंत्र साधना के लिए होने वाले इस कालचक्र अभिषेक के माध्यम से शांति, करुणा, प्रेम और अहिंसा की भावना के प्रति लोगों को आकर्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। यह विश्व शांति के लिए की जाने वाली पूजा है। बोधगया में हो रही 32वीं कालचक्र पूजा 10 जनवरी तक चलेगी। कालचक्र पूजा को वज्रययानी भी कहा जाता है।



लामाओं का कहना है कि इस पूजा के जरिए काल के चक्र सहित शांति और ज्ञान के विभिन्न मार्गो के सम्बंध में बतलाया जाता है। महात्मा बुद्ध की ज्ञान स्थली बोधगया के महाबोधि मंदिर के गर्भगृह में बुद्ध के सामने मत्था टेकने और विश्व शांति के लिए प्रार्थना करने के लिए श्रद्धालुओं की लम्बी कतार लगी हुई है। मंदिर परिसर के अलावा यहां के सभी स्तूपों को आकर्षक ढ़ंग से सजाया गया है।
कालचक्र पूजा के दौरान जब धर्मगुरु दलाई लामा का प्रवेश होता है तो उनकी एक झलक पाने के लिए सभी लोग उनके रास्ते में करबद्ध खड़े रहते हैं। दलाई लामा के कालचक्र मैदान में अपने आसन पर विराजमान होने के बाद लाखों अनुयायी अपने-अपने स्थान पर बैठकर पूजा प्रारम्भ कर देते हैं। तिब्बती मंत्रोच्चार के बाद पूजा अनुष्ठान समाप्त होने के बाद धर्मगुरु प्रवचन करते हैं। इस दौरान पूरा बोधगया तिब्बती मंत्रों से गुंजायमान रहता है। सोमवार को तिब्बती कलाकारों ने देवी-देवताओं के समर्पित गीत और नृत्य पेश किए।
लामा टुल्कु तेनजीन बताते हैं कि पुराने दलाई लामा के समय से कालचक्र पूजा के दौरान आह्वान किए गए देवी-देवताओं को नृत्य समर्पित करने की परम्परा रही है। वह कहते हैं कि एक प्रकार से नृत्य द्वारा उन देवी-देवताओं से पूजा की आज्ञा ली जाती है। इससे यह पता लगाया जाता है कि जहां पर विशेष पूजा की जानी है वह स्थान पूरी तरह शुद्ध है कि नहीं। इसे तिब्बत का तांकि विधान माना जाता है।
देश-विदेश से आने वाले बौद्ध लामाओं और श्रद्धालुओं के लिए कालचक्र पूजा आयोजन समिति की ओर से मगध विश्वविद्यालय परिसर, तेरगर मोनेस्ट्री ओर फल्गु नदी के तट पर सैकड़ों तम्बू लगाए गए हैं।
बोधगया के तिब्बती मंदिर में दलाई लामा के रहने की व्यवस्था की गयी है। धर्मगुरु के प्रवास के दौरान बोधगया प्रशासन सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सचेत है। तिब्बत मंदिर में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। इसके अलावा पूरे बोधगया में पुलिस बराबर गश्त लगा रही है।
उल्लेखनीय है कि पहली कालचक्र पूजा 1954 में नोरबुलिंगा, तिब्बत में हुई थी, वहीं 31वीं कालचक्र पूजा जनवरी 2006 में अमरावती, आंध्रप्रदेश में आयोजित की गई थी।
– मनोज पाठक