नई दिल्ली : राज्यसभा में धर्मांतरण के मुद्दे पर गुरुवार को भी गतिरोध बरकरार रहा। विपक्षी दल धर्मांतरण के मुद्दे पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जवाब की मांग करते रहे और सरकार उन पर चर्चा से बचने का आरोप लगाती रही। पहला स्थगन शून्यकाल के दौरान हुआ और फिर दूसरा प्रश्नकाल के दौरान 15 मिनट के लिए हुआ। इस वक्त प्रधानमंत्री भी मौजूद थे। अपराह्न एक बजे चर्चा नहीं हो पाई और सदन की कार्यवाही दोपहर के भोजन के लिए स्थगित कर दी गई।
कार्यवाही दोबारा शुरू होने पर फिर 15 मिनट के लिए स्थगन हुआ और फिर पूरे दिन के लिए कार्यवाही स्थगित कर दी गई।
मोदी प्रश्नकाल के दौरान सदन में मौजूद थे और सभापति एम.हामिद अंसारी द्वारा चर्चा की अनुमति देने के बावजूद यह संभव नहीं हो पाया, विपक्ष इस दौरान पहले प्रधानमंत्री के जवाब की मांग करता रहा।
इसके बाद, गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री चर्चा के दौरान बोल सकते थे, अगर सदन में चर्चा होने दी जाती।
राजनाथ ने कहा, “दोपहर के भोजन से पहले के सत्र में एक आम सहमति थी कि चर्चा कराई जानी चाहिए। प्रधानमंत्री यहां मौजूद हैं। मैं जवाब देता, और अगर जरूरत पड़ती, अगर सदस्य संतुष्ट नहीं होते, प्रधानमंत्री भी चर्चा में हिस्सा लेते।”
उन्होंने कहा, “मुझे अफसोस है कि प्रधानमंत्री के मौजूद रहने के बावजूद विपक्ष ने चर्चा नहीं होने दी। प्रधानंत्री के पद की कोई गरिमा है या नहीं।”
सदन में लगातार स्थगन और सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच गर्मागर्म बहस देखी गई। विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच गतिरोध के कारण चर्चा नहीं हो पाई।
कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने सरकार पर विपक्ष के साथ अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया।
संसदीय कार्य राज्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने विपक्ष पर चर्चा से भागने का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा, “अपने सदस्यों को देखिए। आप हर बार नई शर्त के साथ सामने आते हैं। आप चर्चा से भाग रहे हैं।”
इससे पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली ने विपक्ष पर आरोप लगाते हुए कहा था कि वह चर्चा नहीं बल्कि सिर्फ कार्यवाही को बाधित करना चाहती है।
जेटली ने कहा, “नियम 267 के तहत चर्चा का नोटिस सोमवार को दिया गया। हम चर्चा के लिए तैयार हैं। लेकिन विपक्ष बहस के तरीके और कौन जवाब देगा, इस पर चर्चा करना चाहता है।”
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के पिछले बयान के बाद भी सदन को चलने नहीं दिया गया था।
जेटली ने कहा, “प्रधानमंत्री का बयान मैत्रीपूर्ण था। यह इस बात का संकेत देता है कि सदन को कैसे चलना चाहिए। लेकिन किसी ने कहा कि यह स्वीकार्य नहीं है और इस वजह से बाधा उत्पन्न करने की प्रतिस्पर्धात्मक राजनीति शुरू हुई।” आईएएनएस