
Gladson Dungdung
यह भाजपा सरकार का चुनावी स्टंट है. भाजपा नेताओं ने अंग्रेजों से ‘बांटो और राज करो’ का जबरदस्त ज्ञान हासिल किया है. जिस तरह से भाजपा सरकार ने सीएनटी/एसपीटी कानूनों में किये गये संशोधन के बाद भाजपा के खिलाफ उपजे आदिवासियों के आक्रोश को शांत करने के लिए धर्मांतरण कानून लाया. ठीक उसी तरह से भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुर्नस्थापन कानून 2013 में किये गये संशोधन के बाद भाजपा के खिलाफ बन रहे जनाक्रोश को दबाने के लिए धर्मपरिवर्तन और आरक्षण का कार्ड खेला है. जबकि सबको पता है कि इस मामले में झारखंड उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय के फैसले स्पष्ट हैं.
धर्मांतरित ईसाई आदिवासियों को अनुसूचित जनजातियों को मिलने वाले लाभ से वंचित करने के मामले पर ‘कपारा हांसदा बनाम भारत सरकार एवं अन्य’ के मामले पर 22 जून 2008 को सुनवाई करते हुए झारखंड उच्च न्यायलय ने ‘केरल सरकार एवं अन्य बनाम चन्द्रमोहनन’ के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए इसे खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर स्पष्ट शब्दों में कहा है कि मात्र धर्म बदलने से किसी व्यक्ति की परम्परा, भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाज और व्यवहार पूर्णरूप से नहीं बदलता है. इसलिए उक्त व्यक्ति को उस समुदाय को मिलने वाला संवैधानिक और कानूनी हक से वंचित नहीं किया जा सकता है.
यह सवाल उठता है कि क्या सिर्फ ईसाई धर्म को अपनाना ही धर्मांतरण है ? राज्य के मात्र 14.4 प्रतिशत आदिवासी ही ईसाई धर्म को मानते हैं, जबकि 39.7 प्रतिशत आदिवासी लोग हिन्दू धर्म को मानते है. क्या हिन्दू धर्म को अपनाना धर्मांतरण नहीं है ? यह तो धर्मांतरण शब्द का ही खिलवाड़ करने जैसा है. यही ईसाई धर्म को अपनाना धर्मांतरण है तो हिन्दू धर्म को स्वीकार करना भी धर्मांतरण है. भाजपा और संघ परिवार धर्मांतरण का पैमाना निर्धारित नहीं कर सकते हैं.


झारखंड में 44.2 प्रतिशत आदिवासी ही सरना धर्म को मानते हैं और उन्हें ही मूल आदिवासी माना जा रहा है. लेकिन धर्म किसी समुदाय का निर्धारण कैसे कर सकता है ? क्या कोई गैर-आदिवासी सरना धर्म अपनायेगा तो वह आदिवासी हो जायेगा ? यहां यह भी सवाल है कि क्या शहरों में रहने वाले सरना धर्मावलंबी आदिवासी अपनी भाषा जानते हैं ? शहरों में रहने वाले ईसाई धर्मांवलंबी आदिवासियों की तरह ही हिन्दू धर्म मानने वाले अधिकांश आदिवासी भी अपनी भाषा नहीं जानते हैं और वे हिन्दू संस्कृति एवं परंपरा पर जीते हैं. इसलिए यदि ईसाई धर्म मानने वाले आदिवासियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता है, तो हिन्दू धर्म मानने वाले आदिवासियों को इसका लाभ कैसे मिलेगा ? कानून और नियम सभी आदिवासियों के लिए एक समान होना चाहिए. ना कि वोट बैंक को ध्यान में रखकर इसका निर्धारण हो. यह तो ठीक वैसे ही है जैसे एक जमाने में कांग्रेस मुस्लिम तुष्टिकरण का खेल खेलती थी, अब वही खेल भाजपा खेल रही है.
लेकिन हम आदिवासियों को यह भी समझना चाहिए कि हमारी मूल लड़ाई आदिवासी पहचान, स्वायत्तता और जमीन, इलाका एवं प्राकृतिक संसाधनों पर मालिकाना हक हासिल करना है ना कि आरक्षण. क्या आरक्षण खत्म होने से आदिवासी खत्म हो जायेंगे ? भारत के संविधान में आरक्षण का प्रावधान सिर्फ 10 वर्षो के लिए किया गया था. क्या अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने वाले सभी समुदाय आदिवासी हैं ? अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलना और आदिवासी होना दोनों अलग-अलग बात है. क्या भारत देश से आरक्षण खत्म होने के बाद आदिवासी नहीं रहेंगे ? क्या जो लोग आरक्षण और आदिवासी के मसले पर कूद रहे हैं, वे आरक्षण खत्म होने के बाद आदिवासी नहीं होंगे ? भाजपा सरकार पिछले चार वर्षों में सिर्फ कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने का काम की है और इसी को छुपाने के लिए धर्मांतरण और आरक्षण का कार्ड खेल रही है. इसलिए आदिवासियों को अपनी पहचान, स्वायत्ता और जमीन, इलाका एवं संसाधनों को बचाने के लिए एकजुट होना पड़ेगा. आदिवासी अस्तित्व खतरे में है, क्योंकि भाजपा सरकार का मूल मकसद है, आदिवासियों को धर्म और आरक्षण की लड़ाई में उलझाओ और उनकी जमीन, जंगल, पहाड़, जलस्रोत और खनिज सम्पदा को पूंजीपतियों को दो.
(लेखक एक सामाजिक कार्यकर्ता व विभिन्न आंदोलनों से जुड़े रहे हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)
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