
Akshay Kumar Jha, Ranchi
”बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी है,
हर शाख पर उल्लू बैठे हैं अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा.”
मशहूर शायर शौक बहराइची की यह लाइनें झारखंड की वर्तमान स्थितियों पर बिल्कुल फिट बैठती है, क्योंकि जिन हाथों में झारखंड के विकास और कानून व्यवस्था की बागडोर दी गयी है. उनपर छोटे-मोटे नहीं बल्कि गंभीर आरोप लगे हैं. किसी भी सूबे के मुखिया यानी मुख्यमंत्री को दो सिपहसालार मिलते हैं. एक प्रशासनिक नेतृत्व के लिए और दूसरा कानून की रक्षा के लिए. पद होता है मुख्य सचिव और डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस यानी डीजीपी का. दोनों ही तय करते हैं कि राज्य किस ओर जाएगा. लेकिन, जिस राज्य में दोनों अफसरों पर संगीन आरोप लगे, उस राज्य की दशा और दिशा क्या होगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है. लोकतंत्र का तजुर्बा कहता है कि नौकरशाह अगर चाह लें तो विकास कोई नहीं रोक सकता, और अगर न चाहें तो विकास हो भी नहीं सकता. झारखंड में रघुवर सरकार के दोनों शीर्ष पदों पर बैठे अफसरों पर संगीन आरोप लग रहे हैं. विपक्ष लगातार कार्रवाई की मांग कर रहा है. रोज ही सरकार की फजीहत हो रही है. लेकिन, सीएम रघुवर दास चुप बैठे हैं.
डीजीपी डीके पांडेय पर लगे गंभीर आरोप
– विपक्ष ने ही नहीं बल्कि मानवाधिकार आयोग ने भी 2015 में पलामू में हुए बकोरिया एनकाउंटर पर सवाल उठाये हैं. डीजीपी पर फर्जी एनकाउंटर कराने का आरोप है. मामले में जो भी कुछ हुआ उससे डीजीपी डीके पांडेय की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं. मसलन कैसे जहां एनकाउंटर हुआ वहां के डीआईजी और थानेदार को एनकाउंटर का पता नहीं रहता है और डीजीपी को इस बात की सीधी सूचना जाती है. तत्कालीन थानेदार हरीश पाठक के बयानों से डीजीपी और पुलिस के दूसरे अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठते हैं.
– बकोरिया कांड की जांच कर रहे सीआईडी के पूर्व एडीजी एमवी राव ने गृह विभाग को पत्र लिखकर डीजीपी डीके पांडेय पर आरोप लगाया है कि बकोरिया कांड की जांच करने में उनपर सुस्ती बरतने का दबाव डीजीपी की तरफ से बनाया जा रहा था. जब एमवी राव ने सुस्ती नहीं बरती तो उनका तबादला कर दिया गया.
– अप्रैल 2015 में 514 ग्रामीणों को नक्सली बता कर सरेंडर कराये जाने का आरोप तत्कालीन सरकार पर है. मामला कोर्ट में है. उस वक्त आईजी सीआरपीएफ डीके पांडे थे. मामले में डीके पांडेय पर भी गंभीर आरोप लगते आ रहे हैं, लेकिन सरकार की तरफ से किसी तरह की कोई कार्रवाई इनके खिलाफ कभी नहीं की गयी.
– 2014 में पूर्व मंत्री भानुप्रताप शाही पर मनी लॉन्ड्रिंग मामले का आरोप लगा. भानु प्रताप झारखंड सरकार के मंत्री बनने जा रहे थे. उसी वक्त मामले पर कोर्ट की तरफ से गिरफ्तारी वारंट निकाला गया. आरोप लगा कि तत्कालीन रांची आईजी डीके पांडेय ने उन्हें गिरफ्तार नहीं होने दिया. कोर्ट के वारंट को वापस कर दिया. जिसके बाद कोर्ट ने इसपर स्वतः संज्ञान ले लिया था. उस वक्त तत्कालीन आईजी डीके पांडेय की वजह से सरकार की खूब फजीहत हुई थी.
– टीपीसी की लेवी पर रोक नहीं लगाने का भी आरोप डीके पांडेय पर लगता रहा है. कहा जाता है कि टीपीसी पर कार्रवाई करने से डीके पांडेय हमेशा बचते रहते हैं.
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मुख्य सचिव राजबाला वर्मा पर लगे गंभीर आरोप
– 2017 में भूख से सूबे में करीब पांच लोगों की मौत हो गयी. मुख्य सचिव पर सीधा आरोप लगा कि उनके कहने पर ही आधार से जिनका राशन कार्ड लिंक नहीं था, उनके राशन बंद कर दिए गये. राशन नहीं मिलने की वजह से गरीब के घरों में चूल्हा जलना बंद हो गया. नतीजा भूख ने राज्य में पांच जानें लील ली. मामले को लेकर राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय और सीएस राजबाला वर्मा के बीच एक बैठक में बहस भी हुई. मंत्री ने इस काम के लिए सीधा सीएस को जिम्मदार ठहराया.
– 2017 के फरवरी महीने में झारखंड को विकास की पटरी पर दौड़ाने के लिए एक मेगा शो का आयोजन किया गया. नाम था मोमेंटम झारखंड. करोड़ों निवेश और लाखों रोजगार का दावा करने वाले इस आयोजन पर कई तरह के सवाल उठे. सीएस पर फर्जी कंपनियों के साथ करार करने का आरोप लगा. मामला विधानसभा से लेकर सड़कों पर जुलूस की शक्ल में भी दिखा. लेकिन, सरकार की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गयी.
– चारा घोटाले मामले में सीबीआई की तरफ से 22 से ज्यादा बार नोटिस का जवाब नहीं देने का आरोप सीएस राजबाला वर्मा पर लगा. मीडिया में खबर में आने के बाद सरकार की तरफ से खानापूर्ति के लिए एक नोटिस दे कर 15 दिनों के अंदर जवाब मांगने का काम किया गया.
– पीडब्ल्यूडी सचिव रहते हुए चाईबासा में सड़क निर्माण में फर्जीवाड़ा करने का आरोप लगा. आरोप सरकार के ही खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने लगाया. आरोप था कि सड़क परिवहन विभाग का सचिव रहते हुए राजबाला वर्मा ने सड़क निर्माण के लिए फर्जी ट्रैफिक सर्वे कराया. मामले के लेकर सरयू राय ने वन विभाग को पत्र भी लिखा. जिसके बाद सड़क निर्माण के काम पर रोक लगी. मामला अब एनजीटी के पास है.
– विपक्ष ने आरोप लगाया कि गृह सचिव रहते हुए राजबाला वर्मा ने मैनहर्ट कंपनी के 19 करोड़ के घोटाले पर चुप्पी साध ली. तत्कालीन विजिलेंस आईजी एमवी राव ने गृह सचिव राजबाला वर्मा को (जो उस वक्त विजिलेंस कमिश्नर भी थीं) तत्कालीन नगर विकास मंत्री रघुवर दास और मैनहर्ट कंपनी पर एफआईआर के लिए लिखा, लेकिन राजबाला वर्मा ने किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की. इसी वजह से रघुवर दास भी राजबाला वर्मा के मामले में अभी चुप हैं. किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं.
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