।। एकमात्र गाण्डेय में भी कांग्रेस का खाता सील ।।
गिरिडीह : लोकसभा चुनाव के बाद से ही हताशा के माहौल में चल रही जिला कांग्रेस ने गिरिडीह इलाके में विधानसभा चुनावों के पूर्व ही चुनावी समर में हथियार डाल दिये थे। गाण्डेय विस को छोड़कर किसी भी विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी ने संजीदगी से चुनाव नहीं लड़ा। नतीजतन गिरिडीह, धनवार, बगोदर में कांग्रेस को साढे दस हजार से भी कम वोट हासिल हुए। जबकि गाण्डेय में कांग्रेस जिले की अपनी एकमात्र सीट भी नहीं बचा पाई।
खुद को पार्टी का धरोहर बताने वाले डॉ सरफराज अहमद के इलाके में मतदाताओं ने मोदी लहर में कांग्रेस का खाता सील कर दिया। कांग्रेस के कार्यकर्ता चुनाव पूर्व यह कहते रहे थे कि गठबंधन के कारण पार्टी इलाके में कमजोर हो रही है। लेकिन गाण्डेय में तो कांग्रेस के कद्दावर नेता और चार दशकों के राजनीतिक अनुभव प्राप्त प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। फिर भी एक नए भाजपाई से वे बुरी तरह कैसे पराजित हो गए!
गाण्डेय में डॉ अहमद को वहां की जनता ने न सिर्फ विधानसभा जाने से रोका बल्कि चुनावी संघर्ष के मुख्य मुकाबले से भी बाहर कर दिया। जिले की तीन अन्य सीटों की बात करें तो धनवार में उपेन्द्र सिंह को चार हजार से कम, गिरिडीह को रूमा सिंह और बगोदर में पूजा चटर्जी को तीन-तीन हजार से कम मतों में ही मतदाताओं ने समेट दिया।
चुनाव समाप्त होने के बाद जिले में कांग्रेस शर्मनाक हार के कारणों के लिए अपनी ही पार्टी के लोगों को जिम्मेवार मान रही है। जबकि क्षेत्र के लोगों की मानें तो कांग्रेस प्रत्याशियों के हार के प्रमुख कारणों में जात-पात, भाई-भतीजावाद, संगठन में नए लोगों को उत्साहित नहीं करना, सभी वर्गों के बीच अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित नहीं मुख्य कारण रहा है।
क्षेत्र के लोगों का मानना है कि कांग्रेस के अधिकांश नेता जमीनी संगठन बनाने के बजाय अखबारों में संगठन तैयार कर अपना जनाधार जताते रहे हैं। जिसके कारण आज कांग्रेस की इतनी बुरी हार हुई है। कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ताओं का कहना है कि जबतक कांग्रेस जनता के सवालों को लेकर जमीनी स्तर पर संघर्ष नहीं करेगी, तबतक कांग्रेस की पुरानी प्रतिष्ठा वापस नहीं लौटेगी।