
Md. Asghar Khan
Ranchi : सर्दी किसी के लिए सुनहरा मौसम बनकर आता है तो किसी के लिए सितम बन जाता है. जिन्हें भगवान ने सबकुछ दिया है, उनकी रात रजाई, कंबल और रूम हीटर से अरामतलब अंदाज में गुजरती है. लेकिन जो छत से महरुम हैं उनपर यह ठंड मुसिबत की मार बन जाती है. रांची के मेनरोड में बिग बजार के पास से रात के नौ बजे गुजरेंगे तो इसका भलिभांति एहसास हो जायेगा. जब इस कड़ाके की ठंड में सड़क किनारे 40 लोगों के एक बंजारा परिवार को खुले आसमान के नीचे सोने की तैयारी करते देखेंगे. यह परिवार हर रात अलाव के सहारे ठंड को मात देने की कोशिश करता है.
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पिंकी और पुष्पा का ठंड से कांपना
राजस्थान से आया यह परिवार पिछले 10 सालों से अलग-अलग शहरों में बैलून बेच कर अपना भरण पोषण कर रहा है. खुद की सांसें चलती रहे इसलिए रंग-बिरंगे बैलून में अपनी सांसों को भर बाजार में बेचते है. परिवार में 10 छोटे बच्चे हैं, जो शहर के विभिन्न मॉल और सड़कों पर घूम कर आने-जाने वाले लोगों से बैलून लेने की गुजारिश करते हैं. जिन हाथों में कलम और किताब होनी चाहिए, उन्हीं हाथों ने गरीबी के कारण बैलून बेचने के लिए थाम लिया. बंजारा परिवार की आरती देवी हर रोज अलाव जलाती है ताकि बच्चों को थोड़ी गर्माहट दे सकें. वे कहती हैं कि हमसे अच्छे तो जानवर हैं जिसे कहीं ना कहीं छत का आसरा मिल जाता है. वह सड़क किनारे खेल रही अपनी तीन साल की बच्ची पिंकी और ढेड़ साल की पुष्पा की ओर ईशारा करते हुए कहती हैं कि दोनों रात में ठंड से कांपती हैं. ठंड ऐसी है कि कंबल ओढ़ने के बावजूद भी नींद नहीं आती है. क्या करें, ऐसे ही हर साल ठंड का मुकाबला करना पड़ता है.
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