राँची, 06 अगस्त, 2011 – मुख्यमंत्री अर्जुन मुण्डा ने कहा कि सरकार प्रयासरत है कि अक्षय उर्जा के प्रयोग में झारखण्ड राज्य देश के अग्रणी राज्यों में शामिल हो एवं अधिक से अधिक लोग अपने दैनिक घरेलू उपयोग हेतु अक्षय उर्जा का इस्तेमाल करें।
साथ ही कम उर्जा के उपयोग वाले सिंचाई संयंत्रों, स्ट्रीट लाईट, परिवहन, ग्रामीण विधुतीकरण इत्यादि में अक्षय उर्जा का अधिकाधिक प्रयोग हो। उन्होंने कहा कि झारखण्ड राज्य में करंज, अरंडी एवं कई अन्य जंगली पौधों के वृक्षों एवं वन्य उत्पादों से अक्षय उर्जा उत्पादन की संभवनाएँ है। राज्य के ग्रामीण एवं वन्य क्षेत्रों में अधुनातन तकनीकों के इस्तेमाल से अक्षय उर्जा के दोहन की संभावनाएँ तलाशी जा रही है। मुख्यमंत्री अर्जुन मुण्डा आज पूर्व केन्द्रीय मंत्री अन्ना पाटिल के नेतृत्व में केन्द्रीय बायो-इनर्जी सेल के प्रतिनिधिमंडल से झारखण्ड राज्य में अक्षय उर्जा की संभावनाओं के संबंध में विचार-विमर्श कर रहे थे।
मुख्यमंत्री मुण्डा ने झारखण्ड अक्षय उर्जा विकास प्राधिकार JREDA के पदाधिकारियों को निदेशित किया कि वे इस विशेषज्ञ दल से प्राप्त सुझावों एवं प्रस्तावों पर तत्काल कार्रवाई करें।
इस दौरान झारखण्ड राज्य में बायो गैस, बायोमास यथा, धान गेहूं, सरसों, तीसी इत्यादि के भूसे से अक्षय उर्जा के उत्पादन की संभावनाओं पर मुख्यमंत्री की लंबी वार्ता हुई। ग्रामीण क्षेत्रों में उन्नत तकनीक के उपयोग के जरिए झारखण्ड राज्य में 600 मेगावाट उर्जा उत्पादन की संभावना बताई गई है। इन संयंत्रों के संस्थापन पर 50% अनुदान दिए जाने का भी प्रावधान है। घरेलु उपयोग सहित लधु – औद्योगिक इकाईयों एवं परिवहन के लिए भी भूसी आधारित अक्षय उर्जा इकाईयों से उत्पन्न बिजली का प्रयोग कतिपए राज्यों में किया जा रहा है। पूर्व सांसद श्री अन्ना पाटिल एवं उनके प्रतिनिधिमंडल ने माननीय मुख्यमंत्री को बताया कि गुजरात एवं महाराष्ट्र में बस परिचालन हेतु भी ईंधन के रूप में बायो-गैस का इस्तेमाल शुरू किया गया है।


