
New Delhi : देश में आर्थिक मंदी का असर बिजली उत्पादन करने वाले कारखानों पर पड़ा है. इसकी तस्दीक सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (CEA) की ओर से जारी एक रिपोर्ट से होती है. सीईए की ओर से 7 नवंबर को जारी ऑपरेशन से संबंधित परफॉर्मेंस रिपोर्ट में कहा गया है कि बिजली कारखानों की जिन यूनिट्स को फोर्स्ड-शटडाउन (Forced Shutdown) का सामना करना पड़ा उनकी कुल क्षमता 65,133 मेगावाट से अधिक की है. इससे पता चलता है कि देश में बिजली औद्योगिक बिजली की मांग में कमी आयी है.
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घरेलू उपभोग की मांग में कमी
देश में मंदी के असर का एक बड़ा उदाहरण बिजली के औद्योगिक और घरेलू उपभोग की मांग में कमी आना है. स्थिति ऐसी बन गयी है कि 133 थर्मल पावर स्टेशन को बंद करना पड़ा है. इसका सीधा असर कोयला उद्योग पर पड़ा है. 11 नवंबर को कोयले के 262, लिग्नाइट और न्यूक्लियर यूनिट्स को विभिन्न कारणों से बंद कर देना पड़ा.
कब कितनी कम हुई बिजली की मांग
ग्रिड प्रबंधकों की ओर से दिये गये आधिकारिक आंकड़ों और द इंडियन एक्सप्रेस की ओर से किये गये एक विश्लेषण के अनुसार देश की कुल स्थापित उत्पादन क्षमता 3,63,370 मेगावाट की इस महीने की सात तारीख को मांग आधे से भी कम हो गयी है.
इस दिन मांग लगभग 1,88,072 मेगावाट रही. आपको बता दें कि देश के उत्तरी और पश्चिम हिस्स में कुल 119 थर्मल पावर स्टेशन हैं. इन सभी को “रिजर्व शटडाउन” का सामना करना पड़ा है. आसान शब्दों में कहें तो मांग में कमी के कारण इन यूनिट्स को बंद कर देना पड़ा है.
सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (CEA) की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन यूनिट्स को फोर्स्ड-शटडाउन (Forced Shutdown) का सामना करना पड़ा उनकी कुल क्षमता 65,133 मेगावाट से अधिक थी. इसमें अतिरिक्त चिंता की बात यह है कि अधिकतर यूनिट्स को कभी कुछ दिन या कभी कुछ माह के लिए बंद रखा गया.
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तकनीकी फॉल्ट भी है एक बड़ा कारण
इन सबके अलावा आधिकारिक आंकड़ों पर गौर करें तो वाटर वॉल ट्यूब में लीकेज जैसे तकनीकी कारणों से 12 से अधिक बिजली कारखाने पहले से ही बंद हैं. सीईए के एक अधिकारी के आंकड़े के मुताबिक इस तकनीकी फाल्ट को सही करने में कुछ ही दिन का समय लगता है. लेकिन, सच्चाई ये है कि यह कई दिनों तक इनको ऐसे ही छोड़ दिया जाता है. और इसका संदेश यह निकलता है कि मांग घटने के कारण बिजली की आपूर्ति कम हो गयी है.
अक्टूबर और मध्य नंवबर में बढ़ती है मांग
लेकिन इसके विपरीत, राष्ट्रीय स्तर पर अक्टूबर और मध्य नंवबर के बाद बिजली की मांग में तेजी आती है. फिर भी, इस साल मानसून के आगे खीसकने और सर्दियों के जल्द शुरू होने से बिजली उपभोग के ट्रेंड पर आंशिक प्रभाव तो अवश्य पड़ा है.
आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष अक्टूबर में बिजली की मांग में साल दर साल के अनुसार 13 प्रतिशत की कमी आयी है. यह मौजूदा एक दशक में सबसे अधिक है. सीईए के आंकड़े बताते हैं कि आद्योगिक राज्य गुजरात और महाराष्ट्र में भी बिजली की मांग में काफी कमी आयी है. जहां, गुजरात में 19, वहीं महाराष्ट्र में 22 फीसदी उत्पादन में कमी आयी है.
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