
Ranchi: दूसरे दल से बीजेपी में शामिल हुए विधायक आखिर किस हक से विधायक बने हुए हैं. पांच दिन से ज्यादा गुजरने के बाद भी किसी विधायक ने इस्तीफा नहीं दिया है. आखिर किस पार्टी के विधायक हैं. इस पर सवाल उठ रहा है.
यह कहना है झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी का. उन्होंने एक प्रेस नोट जारी करते हुए कहा है कि “23 अक्टूबर, 2019 को भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय में आयोजित मिलन-समारोह में कांग्रेस, झामुमो एवं नौजवान संघर्ष मोर्चा के वर्तमान विधायक सुखदेव भगत, मनोज यादव, जयप्रकाश भाई पटेल, कुणाल षाड़ंगी और भानू प्रताप शाही ने मुख्यमंत्री रघुवर दास, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ, झारखंड के सह-प्रभारी नंद किशोर यादव और सांसद जयंत सिन्हा की उपस्थिति में भाजपा की सदस्यता ग्रहण की.
नैतिकता का तकाजा बनता था कि ये पांचों विधायक स्वतः विधानसभा की सदस्यता से त्याग-पत्र देकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण करते. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अगर विधायक इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल होते तो लोकतांत्रिक की कुछ मर्यादा बची रहती. लेकिन बीजेपी की सदस्यता ग्रहण करने के पांच दिन बीत जाने के बावजूद इन विधायकों ने इस्तीफा नहीं दिया है, जो गिरते लोकतांत्रिक मूल्यों को दर्शाता है.
पांच विधायकों का बीजेपी में सदस्यता ग्रहण करना दल-बदल निरर्हता संबंधित 10वीं अनुसूची के अन्तर्गत आता है. आगे उन्होंने मांग की है कि मामले में विधानसभा अध्यक्ष को स्वतः संज्ञान लेते हुए पांचों विधायकों की सदस्यता को रद्द कर लोकतांत्रिक मूल्यों की शुचिता बरकरार रखनी चाहिए.
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जेवीएम के गठन के वक्त बाबूलाल की नैतिकता कहां गयी थीः बीजेपी
मामले पर न्यूज विंग ने बीजेपी के प्रदेश महामंत्री दीपक प्रकाश से बात की. उन्होंने कहा कि बाबूलाल बीजेपी की नैतिकता की चिंता न करते हुए अपनी नैतिकता का ध्यान रखें.
आखिर उस वक्त उनकी नैतिकता कहां गयी थी जब उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा का गठन किया था. उस वक्त दूसरी पार्टियां से ढेर सारे विधायक जेवीएम में शामिल हुए थे.
क्या उन्होंने सभी विधायकों से इस्तीफा दिलवाया था. उस वक्त क्या उन्हें लोकतंत्र की फिक्र नहीं हुई थी. पहले इन बातों का जवाब बाबूलाल दें.
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हर चीज तकनीकी रूप से नहीं देखनी चाहिएः सुखदेव भगत
बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री होने के अलावा एक सुलझे हुए और गंभीर नेता हैं. निश्चित रूप से वो सभी नियम और प्रावधानों से अवगत होंगे. अगर हमने कहीं किसी प्रावधानों का उल्लंघन किया है, तो वो स्वतंत्र हैं संसदीय प्रक्रिया के तहत कुछ भी करने के लिए.
नियमों का उल्लंघन हुआ है या नहीं हुआ है, उससे पहले व्यवहारिक एपरोच देखना चाहिए. जरूरी नहीं है कि हर चीज तकनीकी रूप से देखा जाये. हमें उनसे यही अपेक्षा है कि तकनीकी चीजों को न देखते हुए व्यावहारिक चीजों को देखें. आप किस पार्टी से विधायक हैं के सवाल पर उन्होंने गोलमोल जवाब देते हुए सवाल को टालने की कोशिश की.
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